



रींगस। कस्बे में धूलण्डी के दिन बरात व शवयात्रा एक साथ निकालने की परंपरा है। इस परंपरा को देखने के लिये कस्बे की सड़को पर महिला पुरूषो की भीड लग जाती है। इस दौरान यात्रा में सामिल लोग एक दूसरे को जमकर गालिया निकालते है। यात्रा के बाद सब लोग गिले सिकवे भुलाकर के एक ही जाजम पर आ बैठते है।
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तीन पीढिया होती है शरीक
बारात व शव यात्रा में दादा, पिता व पुत्र तीन पीढिया सामिल होती है। इसमें शामिल छोटे बडे का भेद भी समाप्त हो जाता है। शव के दाह संस्कार के बाद कोई भी व्यक्ती एक दूसरे को ना तो अभ्रद भाषा प्रयोग कर सकता है और ना ही गाली गलोज। जानकारी के अनुसार सैकडो सालो से चल रही इस परंपरा को लोग देश व परिवार में खुशहाली से जोडते हैं। मान्यता है कि इस परंपरा से कष्ट दूर होते है तथा परिवार में खुशहाली आती है। दूल्हे की बारात व शव यात्रा को देखने के लिये लोगो की जगह जगह भीड जमा हो जाती है।धूलण्डी के दिन होली खेलने वाले लोग गोपीनाथ मंदिर के बाहर इकट्ठे होते है।
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बैंड बाजो से निकलती है शव यात्रा
सभी लोग मिलकर घास के पुलते को अर्थी पर सुला देते है। होली खेलने वालो में से ही एक जने को दुल्हे के लिए चुना जाता है। सैकडो लोग बैण्ड बाजे के साथ दूल्हे का श्रृंगार कर उसे घोडे या फिर उंट पर बैठाकर बारात निकलते है। दूल्हे की बारात के पीछे ही शव यात्रा निकलती है। उसमें सैकडो लोग शामिल होते है। यह यात्रा गोपीनाथ मंदिर से रवाना होकर चैपड बाजार, गणगोरी बाजार , जामा मस्जिद, जोशियों, आजाद चैक, चंग बाजार , बालेश्रवर मोहल्ला हरिजन बस्ती, होते हुये दशहरा मैदान स्थित शमशान घाट पर पहुचती है। इसके बाद श्मशान घाट में शव का पूर्ण विधी विधान से अंतिम संस्कार किया जाता है। दाह संस्कार में वे सभी रस्मे निभाई जाती है जो शव को पंचतत्व में विलीन करते समय निभाई जाती है। इसके बाद सभी लोग वापिस गोपिनाथ राजा मंदिर के सामने एकत्रित होते है। इसके बाद एक दूसरे को शुभकामना देते है।