
रींगस/खाटूश्यामजी. बाबा श्याम दरबार में इस बार भक्तों को देवलोक के भी दीदार होंगे। देवलोक बनाते हुए इस तरह की इलेक्ट्रॉनिक झांकी सजाई जा रही है। इसमें भगवान कृष्ण की मूर्ति नृत्य करेंगी और सभी देव उन पर फूलों की बारिश। मनमोहक दृश्य को पहली बार सजाया जा रहा है। खाटू केसरिया रंग से रंगने लगा है। मेले की शुरुआत आठ मार्च को होगी। इस बार श्याम दरबार में मत्था टेकने के लिए करीब 25 लाख श्रद्धालु जुटने की संभावना है। अब तक करीब डेढ़ लाख श्रद्धालु बाबा के दरबार के दर्शन कर चुके हैं।
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1971 छोटा सा मेला भरा करता था। दोपहर बाद मेला भरा करता था। एक लकड़ी का झूला कबूतर चौक में लगता था, जिसे दो आदमी हाथ से चलाकर बच्चों का मनोरंजन किया करते थे। श्याम रथयात्रा की शुरुआत और यात्रा के समापन पर ही मेला संपन्न हो जाया करता था। उस वक्त मुश्किल से एक हजार श्रद्धालु पहुंचते थे। आज श्रद्धालुओं की संख्या 25 लाख को पार कर गई है। तब बिजली की व्यवस्था भी नहीं थी। खाटू की जनसंख्या भी करीब 1200 थी, आज 12 हजार के करीब है।
1980 सड़क बननी इसी साल शुरू हुई। पहली बार रींगस से लांपुआ तक सड़क बनी।
1990 धर्मशालाएं बनने का दौर इसी साल शुरू हुआ। आज धर्मशालाओं की संख्या 280 तक पहुंच गई है।
2000 इस साल खाटूश्यामजी में मोबाइल क्रांति आई। आज मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या करीब 60 हजार है। मेले के दरमियान सभी मोबाइल नेटवर्क जाम हो जाते हैं।
2014 खाटू हाइटेक होने लगा है। खाटूश्यामजी की खुद की वेबसाइट है। 125 सीसीटीवी कैमरों से नजरें रखी जाने लगी है। कोलकाता से हर दिन 45 क्विंटल फूल मंगवाकर बाबा का शृंगार किया जाता है।
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6 दिन में 200 करोड़ का कारोबार
लक्खी मेले में करीब 4500 दुकानदारों को रोजगार मिल जाता है। इनमें एक हजार दूसरे शहर या प्रदेश के होते हैं। मेले में आने वाले प्रवासी यहां की कलात्मक चूडिय़ों, आचार व खाटू नरेश से जुड़ी कई कलात्मक वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। लक्खी मेले में करीब 200 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। मेले में आए विभिन्न प्रांतों के लोग व शेखावाटी से जाकर वहां बसे प्रवासी राजस्थानी यहां के ठेठ देशी स्वाद को नहीं भूले है। यहां से मुख्यतया कैर, सांगरी, काचरी, ग्वार फली व फतेहपुर का चूर्ण नहीं ले जाना भूलते हैं। इस तरह की खाटूश्यामजी में करीब 55-60 दुकानें है। इनका कारोबार लगभग 80 से 90 लाख रुपए के लगभग होता है। यहां की कलात्मक चूडिय़ों एवं लाख की चूडिय़ों की भी खासी खरीदारी होती है। महिलाएं यहां से चूडिय़ां अपने साथ ले जाती है। दुकानदारों के अनुसार, मेले में करीब 25 से 30 लाख के करीब का चूडिय़ों का कारोबार होता है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को यहां के लोग मकान व दुकानों के लिए जगह देकर किराया भी वसूलते हैं।
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लियाकत, अमानत व सलामत गाते हैं भजन
लियाकत अली, अमानत अली व सलामत खां। इनके भजनों में लखदातार के लाखों श्रद्धालु झूम उठते हैं। गायक लियाकत अली बताते हैं- वे 25 साल से बाबा श्याम के भजन-कीर्तन कर रहे हैं। साल के हर दिन रात के आठ बजते ही श्याम के दरबार में सुरीली महफिल सज जाती है। इन्हें सुनने के लिए सैकड़ों श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। इससे पहले उनके पिता मजीद खां भजन गाते थे।
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45 साल से रथ तैयार कर रहे हैं खुदाबक्श
श्याम के एक और भक्त हैं- खुदाबक्श खां तैली। इन्होंने 45 सालों से श्याम बाबा की रथ यात्रा को तैयार करने की कमान थाम रखी है। रथयात्रा कस्बे के मुख्य मार्गों से निकाली जाती है। रथ की रिपेयरिंग और उसको तैयार करने की जिम्मेदारी निभाते हुए उनके दिल को अलग सी खुशी मिलती है। कहते हैं-जब तक हिम्मत है, तब तक जिम्मेदारी निभाते रहेंगे।