चैथ का बरवाडारू- राज्य व जिलो मे एसे तो कई प्रसिद्व व दर्षनीय स्थल है। लेकिन सवाई माधोपुर से 22 कि.मी. कि दूरी पर बसा चैथ का बरवाडा गॉंव मे इतिहास मे रची चैथ माता का मन्दिर जो कि चमत्कारी मन्दिर है। चैथ माता मन्दिर कि स्थापनारू- शिव भक्त राजा बीजल के पराक्रमी पुत्र महाराज भीम सिंह जी ने आज से करीब 550 वर्ष पूर्व बरवाडा से 15 कि.मी. दक्षिण की तरफ स्थित पचाला नामक स्थान से श्री चैथ माताजी की प्रतिमा लाकर बरवाडा के पास स्थित अरावली श्रृंखला की एक ऊॅची पहाडी पर स्थापना करवाकर एक छोटा सा मन्दिर भी बनवाया । बरवाडा मे चैथ माताजी की प्रतिमा स्थापित होने के बाद इस गॉंव का नाम चैथ का बरवाडा हो गया । महाराज श्री भीम सिंह जी ने अपने पिता कि स्मृति मे गॉंव के बाहर एक विषाल छतरी का निर्माण करवाकर षिवलिंग कि स्थापना करवाई तथा पास हि एक तालाब बनवाया । छतरी आज भी बीजल कि छतरी तथा तालाब माताजी का तालाब के नाम से प्रसिद्व है।तालाब की पाल पर चढते ही लबालब भरे तालाब बिजल कह विषाल छतरी व माताजी की पहाडी का विहंगम दृष्य देखकर यात्री भाव - विभोर हो जाते है। चैथ का बरवाडा सवाई माधोपुर -जयपुर रेल्वे मार्ग पर सवाई माधोपुर से चलने पर 22 कि.मी. कि दूरी पर दूसरा स्टेषन पडता है। चैथ का बरवाडा मे चैथ माताजी के साथ गणेषजी की प्रतिमा भी प्रतिष्ठापित है।चैथ गणेष की प्रतिमा साथ -साथ होने से इस स्थान का विषेष चमत्कार है। माताजी के मन्दिर मे भैरव जी महाराज भी विघमान है। चैथ का बरवाडा मे प्रतिवर्ष माह सुदी चैथ से अष्ट्मी तक माताजी का विषाल मेला लगता है। जिससे दूर -दूर से लाखो यात्री आते है। चैथ माताजी के मन्दिर मे सैकडो वर्षो से घी की अखण्ड ज्योति जलती चली आ रही है। महाराज श्री भीमसिंह जी के देवी की उपासन नही करने वाले कमजोर उŸाराधिकारयो पर राठौडो ने उस समय आक्रमण किया जबकि माताजी के नीचे वाली बस्ती मे अक्षय तृतीया सोमवार को एक बारात प्रवेष कर रही थी। सम्पूर्ण बारात मारी गई थी । इसी वजह से आखातीज को चैथ का बरवाडा ठिकाना व इस के अधीन आने वाले 18 गॉवो मे माताजी की अंाट पड गई। आखातीज का आज भी ठिकाना चैथ का बरवाडा व इसके अधीन 18 गॉवो मे ष्षादि-विवाह व कोई भी ष्षुभ कार्य नही होते है।यहा तक कि घरो मे कढाई भी नही चढती है। इस अक्षय तृतीय को सोमवार था सो आज भी सोमवार को बहू- बेटी को बाहर नही भेजते है। आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व माताजी के परम भक्त सारसोप ठिकाने के जागीरदार महाराज श्री फतेह सिंह जी ने जयपुर व बूंदी नरेष के मध्य होने वाले युद्व मे जयपुर नरेष की तरफ से युद्व लडकर अदम्य वीरता दिखाई थी। कहावत है की माताजी के प्रताप से उनका मुण्ड रहित धड ही 4-5 कि.मी. तक युद्व करता रहा। फतेह सिंह जी के योग्य एंव सबल माताजी के परप भक्त उŸाराधिकारयो के काल मे ग्वालीयर व जयपुर रियासत के मध्य युद्व होना तय हो गया तो ग्वालीयर के महाराज होल्कर मल्लार राव ने अपनी फौजे सवाई माधोपुर इकठी कर ली और युद्व करने के लीए फौजे आगे बडी तो बरवाडा दरबार ने उसे रोक दिया और मल्लार राव के पास कहलवा भेजा कि बरवाडा दरबार युद्व करना चाहता हैं तो मल्लार मल्लार राव ने कुछ इस तरह कहारू- पान की बिडी चाबकर थूकत लागःबार गढ बरवाडा भेद द्यूम्हारी नाम मल्लार और युद्व करने के लिए आ जाते है दो दिन तक भंयकर गोलाबारी हुई जिसके निषान गढ की दिवारो पर आज भी मौजूद है।बरवाडा दरबार ने जब चैथ माता की आराधना की तो माताजी का ऐसा चमत्कार हुआ की मल्लार राव को गढ की दिवारे धधकते हुऐ तांबे की लगी तथा कंगूरे पर माताजी का खूंखार झलकने लगा जिसे देख कर मल्लार राव घबरा गया तथा अपनी हार मानकर जयपुर दरबार से बिना युद्व किए ही वापिस चला गया । चैथ का बरवाडा के अन्तिम नरेष महाराज श्री मानसिंह जी द्वितीय विष्वयुद्व मे युद्व करने गए थे वहा पर वे चारो तरफ दुष्मनो से घिर गए तो चैथ माताजी की आराधना करते हि चैथ माताजी साक्षात रूप से प्रकट हुई और बोली कि बेटे मान सिंह घबराओ नही बहादुरी से लडो युद्व मे माताजी साक्षात उपके साथ रही । महाराज मानसिंह युद्व जीतकर बरवाडा पधारे और खुशी मे स्न 1944 ई.मे तालाब के पूर्व मे भव्य मन्दिर बनवाया जिसमे विषाल शिवलिंग की स्थापना करवाई । ऐसा षिवलिंग आस - पास देखने को नही मिलता । यह भव्य मन्दिर बरवाडा का एक दर्षनीय स्थल है।आज से 30-35 वर्ष पूर्व चैथ माताजी के मन्दिर के ऊपर भंयकर बिजली गिरी थी ।उस समय मन्दिर मे 10-12 व्यक्ति तथा कन्हैयालाल जी ब्रह्यचारी मौजूद थे 2-3 व्यक्ति बेहोष हो गए तथा सभी का जीवन संकट मे पड गया था । उस समय ब्रह्यचारी जी ने चैथ माता की परिक्रमा देकर सबको भभूत दी और चैथ माता का ध्यान करते ही बिजली का असर खत्म हो गया बेहोष व्यक्ति भी ठीक हो गए मन्दिर का भी कुछ नही बिगडा । बिजली गिरने के निषान मन्दिर मे पर आज भी मौजूद है। पखाले वाले रावजी चैथ माता को जब पखाला से चैथ माता जी के पास कनक दण्डवत से आते थे तो भरी बरी बनास नदी मे भी माताजी के प्रभाव से उनका कुछ नही बिगडता था। चैथ माता जी की प्रेरणा से स्वामी मानसिंहजी रेलवे की बढिया नौकरी छोड कर 4 माह 20 दिन मे कोट से कनक दण्डवत करते हुए आए और माताजी कृपा से षीघ्र पैसा इकठ्ठा करके माताजी की पहाडी पर सन्1985 मे जल पहुॅचवा दिया । पहाडी पर माताजी के मन्दिर तक जाने वाले सम्पूर्ण ।रास्ते मे बिजली मौजूद है। चैथ माता जी के दरबार मे पहली बार दुर्गा ष्तचण्डी महायज्ञ श्री श्री108 श्री कृष्णादास जी पंचतेरा भाई के प्रिय षिष्य श्री गंगगदासजी महाराज योगेष्वरी के द्वारा सं 2046की गंगा दषमी को भक्त जनो के सहयोग से सम्पन्न करवाया। महाराज ने एक पुख्ता यज्ञषाला का निर्माण भी करवाया और चैथ माताजी के दरबार मे श्री हनुमानजी के मन्दिर का भी निर्माण करवा दियाऔर भविष्य मे दृर्गा सहस्त्र चण्डी महायज्ञ करवाने का विचार है।वर्तमान मे चैथ माताजी की धर्मषाला का निर्माण भी तेजी से चल रहा है।चैथ माताजी एसी भोली माताजी है कि इनसे श्रद्वा एंव भक्तिपूर्वक जो भी कोई जो कुछ मांगता है,वही उसे दे देती है।