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भगवान जगन्नाथ स्वामी का नवकलेवर उत्सव 10 से

डग -मां डगेष्वरीकी पावन धरा में भगवान जगन्नाथ स्वामी का नवकलेवर उत्सव 10 जूलाई 14 जूलाई तक बढ़ी धूम-धाम से मनाया जावेगा जिसमें 10 जूलाई को गायत्री मन्दिर से सुबह कलष यात्रा प्रारम्भ होगी जो जगदीष मन्दिर पर समाप्त होगी इन सभी कार्यक्रमो में नवकलेवर(प्रतिमा) का नगर भ्रमण 12 जूलाई को षाम 4 बजे से प्रारम्भ होगा जो पुरे नगर का भ्रमण करेगा और 14 जूलाई को प्राण प्रतिश्ठा,ध्वजा रोहण,पूर्णाहुति व महाप्रषादी का कार्यक्रम रहेगा ये सभी कार्यक्रम आचार्य पं.मोहनलाल व्यास के सानिध्य में सम्पन्न होगे ।

नवकलेवर क्यां है-
जब भी आशाड़ का अधिक मास होता है तो भगवान जगन्नाथ,बलभद्र व बहिन सुभद्रा को नवकलेवर प्राप्त होता है यह नवकलेवर आशाड़ 8 वर्श में या 19 वर्श में पड़ता है इसी में भगवान को नवकलेवर होता है जिसका आयोजन डग में आज से पूर्व सन् 1977 में हुआ था और ये पावन अवसर 38 वर्श के बाद डग में जगदीष मन्दिर में 10 जूलाई से 14 जूलाई तक मनाया जावेगा जिसमें जल कलष यात्रा,देव आव्हान पुजन, हवन, जलाधिवास, महास्नान एवं नवकलेवर नगर भ्रमण सहित कई आयोजन होगे जिसमें 14 जूलाइ्र को प्राण प्रतिश्ठा सुबह 11.30 पर,ध्वजा रोहण, पूर्णाहूति व महाप्रषादी दोपहर 2 बजे होगा ।

 कोइली बेकुण्ठ विधि क्या है-
भगवान जगन्नाथ की मूर्ति लकड़ी से बनी होती है उन्हे दारूबह्य व काश्ठब्रह्य कहते है जब पुराने काश्ठ कलेवर के स्थान पर नव कलेवर रत्नबेदी पर प्रतिश्ठित हो जाती है तो पुराने कलेवर को थानसिंह जी बावड़ी पर अन्तिम संस्कार कर दिया जायेगा जिसे कोईली बेकुण्ठ कहते है ।

 किस लकड़ी से बनती है प्रतिमा-
जगन्नाथपुरी के जंगलो में विषेश प्रकार का नीम का पेड़ होता उस पर षंख,चक्र,गदा और पदम चिन्ह होते है जिस पर सर्प भी लिपटा हुआ होता है वहां जाने पर सर्प की पुजा की जाती है और सर्प उस पेड़ को छोड़कर चला जाता है उस पेड़ को काटकर लाते है जिसकी लकड़ी से भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा बनाई जाती है जो काफी षुद्ध होती है ।

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