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जैन समाज निकाला मौन जुलुस, दिया ज्ञापन

 
डग : कस्बे में जैन सकल श्री संघ और जैन ष्वेताम्बर सोष्यल ग्रुप षाखा डग ने राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा 10 अगस्त को दिए संथारा के विरूद्ध में फेसले को लेकर जैन समाज में भारी आक्रोश के चलते समाज ने देषव्यापी बंद व धर्म बचाव आंदोलन के तहत् कस्बे में पूर्णतः अपने प्रतिश्ठान बंद रखे वही जैन समाज के कर्मचारियों व विद्यार्थियों ने अपने कार्यालय व विद्यालय से एक दिन का अवकाष रख रोश जताया । समाज के लोगों ने गणेष चैक स्थित पदमप्रभु छोटा जैन मंदिर परिसर में एकत्रित होकर कस्बे के गणेष चैक, बुधवारिया दरवाजा, पुराना बसस्टैण्ड मौन जुलुस के रूप में विरोध जताया वही जुलुस में नन्हे नन्हे बच्चो में भी खासा उत्साह देखने को नजर आया सभी बच्चो ने अपने हाथों में हाईकोर्ट के फेसले के विरोध में हाथ में नारे लिखित तख्तियां लेकर नजर आए मौन जुलुस पुलिस थाना परिसर पहुंचा जहां महामहिम राश्ट्रपति के नाम डग नायब तहसीलदार को समाज के प्रबुद्ध लोगों ने ज्ञापन सोंपा पुलिस थाना परिसर से मौन जुलुस गंगधार दरवाजा, नीम चैक सर्राफ बाजार, कांचमहल से होते हुए जैन स्थानक परिसर पहुंचे ।


जहां विराजित पूज्य महासतीजी रंभाकुंवरजी ठाणा सहित चातुर्मास काल में विराजित है उनके द्वारा संथारा पर विस्तृत रूप में बताते हुए कहा कि राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा संथारा के विरूद्ध में जो फेसला दिया गया है वो धर्मविरूद्ध निर्णय है साध्वीजी ने कहा कि जैन समाज के तीन मनोरथ है जिसमें तीसरा मनोरथ यह है  िकवह दिन मेरा धन्य होगा जिस दिन में संलेखना संथारा कर पण्डित मरण को प्राप्त होउंगा क्योकि संथारा आत्महत्या नही है संथारा आत्मा पर लगे अवगुणो को समाप्त हरने का साधन है तथा आत्मउत्थान, आत्मषुद्धि और प्रायंष्चित का महानतम व्रत है यह घोर तप है और यह जीवन के अंतिम क्षणो में साधनाषील को चिर षांती प्रदान करने का प्रबल साधन है आत्महत्या राग द्वेश एवं मोहवृति से की जाती है आत्मघात प्रायः लज्जा से, निराषा से, आवेष से किया जाता है जैसे कोई व्यक्ति समाजसेवा व राश्ट्रसेवा के लिए बलिदान हो जाता है हम उस बलिदान को आत्महत्या नही मानते है ठीक उसी प्रकार जो व्यक्ति आत्मषुद्धि और आत्मोत्थान के लिए तन और मन, धर्म साधना हेतु न्यौछावर कर देता है उसके इस महान त्याग को आत्महत्या कैसे माना जा सकता है .......? आत्महत्या निदंनीय अपराध है, कायरता पूर्ण अधर्म का कृत्य है, जबकि संथारा पवित्र, प्रषंसनीय और आत्मोत्थान का विरोचित कार्य है वही मांगलिक श्रवण कराकर कार्यक्रम का समापन किया गया

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